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इस परीक्षा में स्वर और ताल से परिचित होना तथा उसका क्रियात्मक संगीत में साधारण प्रयोग करना विद्यार्थी से अपेक्षित है।
शुद्ध स्वर सरल समुदाय में गाना । स्वर अलंकारों से प्रारंभिक परिचय | पाँच स्वर अलंकार आना आवश्यक है। ४ स्वरोंके अलंकार उदाहरण – सारेगम, रेगमप…. / सागरेसा, रेमगरे,… |
निम्नलिखित रागों में एक गीत और किन्ही 2 रागों में एक लक्षणगीत
1. भूपाली, 2. दुर्गा, 3. खमाज, 4. कल्याण 5. भिमपलास, 6. काफी, 7. देस, 8. बागेश्री
इन रागों के आरोह-अवरोह गाना-बजाना तथा गाए हुए सरल स्वर समुदाय द्वारा पहचानना।
त्रिताल और झपताल का ज्ञान और हाथ से ताल पकडना।
पाठ्यक्रम के रागों का वर्णन (स्वर, वादी, संवादी, समय, आरोह, अवरोह, आदि। )
निम्नलिखित शब्दों की संक्षिप्त परिभाषाएँ :
संगीत, आरोह, अवरोह, वादी, संवादी, ताल, सम, काठ, मात्रा, ठेका (ताली), स्वर
प्रारंभिक का पूरा अभ्यास, साथ में
सात शुद्ध स्वरों का गाना, बजाना, पहचानना । शुद्ध स्वरों के सात सरल अलंकार विलम्बित और मध्य लय में गाना-बजाना। 6 स्वरों के अलंकार – जैसे सारेसारेगम, रेगरेगमप…/सारेसागरेसा, रेगरेमगरे… दो या तीन स्वर लगाने और पहचानने की क्षमता ।
प्रारंभिक की रागों मे से किन्ही 4 रागों में आलाप, बोलतान और तान सहित 5 मिनट तक गाने की या बजाने की तैयारी। सरल आलापों से राग पहचानना। अन्य 4 रागों के आरोह, अवरोह, स्थाई, अंतरा का ज्ञान आवश्यक।
त्रिताल, झपताल, दादरा, केहरवा, हाथ से ताल पकड़कर दिखाना |
पाठ्यक्रम के रागों का शास्त्रीय ज्ञान ।
स्वर, आरोह, अवरोह, जाती, वादी, संवादी, वर्जित स्वर, पकड आदि का विवरण ।
निम्नलिखित शब्दों की संक्षिप्त परिभाषाएँ :
आरोह, अवरोह, संगीत, वादी, संवादी, ताल, सम, मात्रा, काल (खाली), ठेका (ताली), खंड (विभाग), शुद्ध स्वर, कोमल स्वर, तीव्र स्वर, नाद, सप्तक, मुख्य अंग, आलाप, तान, लक्षणगीत, ध्वनी, मेल, अलंकार, पलटा, राग, स्वरमालिका (सरगमगीत)
छोटा ख्याल, स्थायी, अंतरा, लय (विलम्बित, मध्य, द्रु्त), ठेका, वर्जित स्वर, आवर्तन |
प्रारंभिक का पूरा अभ्यास, साथ में
शुद्ध स्वरों के गाने बजाने तथा पहचानने में निपुणता । विकृत स्वरों का ज्ञान
चार शुद्ध स्वरोंके समूह तथा तीन स्वरों के समूह को (जिसमें एक या दो स्वर विकृत हो) गाना बजाना तथा पहचानना। आठ स्वरोंके अलंकार जैसे सारेगरे सारेगम, रेगमग रेगमप…/सारेगरे सागरेसा, रेगमग रेमगरे…
प्रथम वर्ष के रागों की पुनरावृत्ती के साथ इस वर्ष निम्नलिखित 10 राग सीखने है ।
(1) बिहाग (2) केदार (3) सारंग (4) धानी (5) तिलककामोद (6) भैरव (7) तिलंग (8) पिलु (9) पटदीप (10) अल्हैया बिलावल
इन रागों में आरोह, अवरोह, प्रारंभिक आलाप-तान, बोलतान तथा एक-एक मध्य लय का ख्याल गत सीखनी है। इन रागों में से किनही ५ रागों में मध्य ‘लय के ख्याल गत आलाप-तान, बोलतान सहित 8 मिनट तक गाने-बजाने की तैयारी। इन दस रागों में से किन्ही तीन रागों में लक्षण गीत, एक भजन और एक नाट्य गीत विद्यार्थियों से तानपूरे पर गाने का अच्छा अभ्यास अपेक्षित है। गाये हुए आलापों द्वारा राग पहचानने की क्षमता। पहले सिखे हुए सभी ताल और इस वर्ष के द्रुत एकताल, रुपक हाथसे पकडकर उसके बोल बोलना।
सूचना – इस वर्ष की तथा आगे की सभी परीक्षाओं के गायन परीक्षार्थियों के साथ हार्मोनियम की संगत स्वीकार्य नहीं है।
पहले तीन वर्षो के सभी ताल और इस वर्ष तेवरा और सुरफाक्ता (सुलताल) इस ताल के बोल, ताल पद्धती से लिखना और हाथ से ताल देकर बोल बोलना ।
पहले तीन वर्षो के विषयों को विस्तृत रूप से दोहराकर निम्नलिखित विषयों का अध्ययन:
तीवरा, दिपचंदी, तिलवाडा (ऊपर के रागों में से एक ख्याल तिलवाडा ताल में आना आवश्यक है। )
इस वर्ष सभा में गाने बजाने का अभ्यास तथा उसमें निपुणता प्राप्त करना अपेक्षित है। रागों का सूक्ष्म परिचय, संगीत के विभिन्न विषयों पर (क्रिया और शास्त्र) मौलिक विचार तथा उनको समझने तथा समझाने की योग्यता विद्यार्थी में होनी चाहिए। क्योंकि इस परीक्षा में उत्तीर्ण होते ही विद्यार्थी संगीत के क्षेत्र में पदार्पण करने के योग्य समझा जाता है। गायन वादन में अपनी प्रगती होनी चाहिए। अपना वाद्य मिलाने में निपुणता। संगीत की विभिन्न गायकी-प्रकारों से क्रियात्मक रूप से परिचय। धृपद की नोम-तोम और बोलबांट, ठुमरी में बोल बनाना, तराने की तैयार ताने तथा लयकारी, टप्पा अंग की ताने। एक प्रकार इस वर्ष के विद्यार्थी को संगीत जगत के हर क्षेत्र तथा उसके विविध अंगों और रूपों से परिचित होना आवश्यक है। जिससे उसका दृष्टिकोण व्यापक बने और वह योग्य शिक्षक बन सके।
1. गुजरी तोड़ी, 2. मारुबिहाग, 3. शाम कल्याण, 4. परज, 5. शुद्ध कल्याण, 6. रामकली, 7. नायकी कानडा, 8. पूर्वाकल्याण, 9. देवगिरी बिलावल, 10. शुद्ध सारंग, 11. सूरमल्हार
1. भैरव-बहार, 2. कलावती, 3. अभोगी, 4. बसंत-बहार, 5. यमनी- बिलावल, 6. जोग, 7. मेघ-मल्हार, 8. रागेश्री, 9. चंद्रकंस, 10. हंसध्वनी
मंच-प्रदर्शन के लिये विद्यार्थी एक राग संपूर्ण विस्तार के साथ तथा एक ठुमरी, भजन अथवा ललित शैली की कोई भी रचना चुन सकता है। विस्तृत अध्ययन के रागों में विलम्बित और द्रुत रचना के साथ पूर्ण विस्तार अपेक्षित है। इसके अलावा इन रागों में रचना वैचित्र्य, ताल वैचित्र्य आदि का ध्यान रखकर अतिरिक्त बंदिशों का संकलन विद्यार्थी को करना चाहिए। जिसमें ध्रुपद धमार, तराने, चतरंग, त्रिवट, विविध तालों की बंदिशें आदि को समुचित प्रतिनिधित्व प्राप्त हो। गायन वादन की विभिन्न शैलियों को प्रदर्शित करने वाली कुछ रचनाएँ भी संग्रहित करनी चाहिए।
सभी प्रचलित तालों के ठेके विभिन्न लयकारियों में बोलने का अभ्यास होना चाहिए। (दुगुन, तिगुन, चौगुन, डेढगुन, सवागुन इत्यादी)
स्वरलिपि करने तथा पढ़ने में विशेष योग्यता। तुरन्त नई स्वररचना बनाने का अभ्यास ।
(1) श्री (2) गौड – मल्हार (3) बहार (4) मारवा (5) गोरख कल्याण (6) अहिरभैरव (7) नन्द (8) बिलासखानी तोडी (9) कोमल रिषभ आसावरी (10) देसी (11) भटियार (12) देसकार
(1) गौरी (तीव्र मध्यम) (2) मधमाद सारंग (3) मधुवंती (4) मालगुंजी (5) जोगकंस (6) खंबावती (7) बिहागडा (8) सरफरदा बिलावल (9) कुकुभ बिलावल (10) जयंत मल्हार (11) रामदासी मल्हार
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